जिंदगी और मौत के बीच की यात्रा
आदमी मरने के बाद कुछ नहीं बोलता, कुछ नहीं सोचता, कुछ नहीं समझता, लेकिन मरने से पहले वो अनवरत ही बोलता जाता है, चलती जाती है जीवन की ये गाथा...अहम ये है कि इस जीने-मरने के बीच की यात्रा को हमने कैसे जिया है, ये नहीं कि मरने के बाद हम उसके बारे में ये कहें कि अरे अच्छा इंसान था, अब नहीं रहा। इंसान जब तक जिंदा रहता है किसी ना किसी को उससे शिकायत जरूर रहती है, लेकिन मरने के बाद उसकी खामोश जुबान के साथ लोगों की सारी शिकायतें खत्म हो जाती है।
एक सवाल , क्या हम जीते जी उन्हीं लोगों से प्यार नहीं कर सकते। क्या हम अपनी नाराजगी का पिटारा बंद नहीं कर सकते । मर जाने के बाद तो उसके साथ ही दफ्न हो जाती है उसकी सारी बातें, यादें और वो रिश्ता भी, जो एक इंसान का इंसान के साथ होता है। लेकिन एक रिश्ता हम मरने के बाद भी निभाते हैं वो है रूह का रिश्ता। आत्मा का रिश्ता क्योंकि शरीर तो खत्म हो जाता है लेकिन रुह कभी मरती नहीं। तो ये रिश्ता तो हमें निभाना पड़ता है। जिंदगी मौत के बाद भी खूबसूरत होती है, बस हम समझ नहीं पाते, क्योंकि अगर आपने जिंदगी को नहीं जिया तो मौत भी भारी ही लगेगी। इसलिए जिंदगी से ऐसा रिश्ता कायम कर लो जो मौत को मात दे दे और मरने के बाद भी आपकी खामोशी सब कुछ कह जाए।
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