#RIPSushant: तुम बेसहारा हो तो किसी का सहारा बनो, तुमको खुद सहारा मिल जाएगा

'तुम बेसहारा हो तो किसी का सहारा बनो, तुमको अपने आप ही सहारा मिल जाएगा...अनुरोध फिल्म का ये गाना आज बहुत याद आ रहा है। जब से सुशांत की मौत की खबर सुनी है,दिल यही गा रहा है। मैं उसके डिप्रेशन पर या उसने ऐसा क्यों किया इसपर कोई जजमेंट नहीं दे रही हूं। मुझे भी सुशांत के जाने का गम है, वो एक यंग और टेलेंटेड एक्टर था, लेकिन आम लड़का भी था। जिसे जिंदगी एक मोड़ पर आकर शायद अजनबी सी लगने लगी थी। हालांकि कुछ भी कहना ठीक नहीं है, उसने ऐसा क्यों किया, ऐसा करना सही नहीं था, सुसाइड कोई समाधान नहीं है, इसपर चर्चा की कोई बात ही नहीं है। उसकी मौत ने जिस सवाल को हमारे सामने खड़ा किया है वो ये है कि पहले तो कभी हम अपने आस-पास झांककर भी नहीं देखते हैं कि कोई मर रहा है या जी रहा है। खुद से ही फुर्सत नहीं मिलती है, लेकिन उसके मर जाने के बाद हम उसके दर्द के एहसास को बांटते फिरते हैं। ये अच्छा है.....

क्या कभी हमने अपने से ज्यादा किसी और के दर्द को महसूस किया है, क्या आस-पास इतनी कहानियां हैं, उनमें से एक भी हमने सुनी है। तसल्ली से बैठकर कभी किसी और के दर्द को जिया है और फिर हम कहते हैं वो चला गया, उसने कुछ कहा नहीं, उसे ऐसा नहीं करना चाहिए था। ये सब कहना आसान है लेकिन अगर हम बस इतना सा करना शुरू कर दें तो दूसरा सुशांत नहीं होगा। सुशांत की मौत से एक लर्निंग तो कम से कम हम ले लें कि अब रोजोना बस अपने आस-पास एक या दो मुश्किल से उनकी कहानी सुनेंगे, बस सुनेंगे, कुछ नहीं कहेंगे। उन्हें कहने देंगे। बस कहने देंगे। 

हम समझ ही नहीं पाते और आंखों के सामने चंद पलों में एक जिंदगी खत्म हो जाती है और वो हमसे ही एक होता है.....हम अपने में ही रह जाते हैं। क्योंकि हमें कहां फुर्सत दूसरों की सुनने की। चलिए आज बस इतना वादा कर लें कि सबका नहीं और दूर तक का नहीं,लेकिन अपने घर का, दोस्तों का या पड़ोसी का, किसी एक के मन का सच्चे साथी बनेंगे। ताकि फिर हम ये न कह सकें कि काश कुछ कर पाते, काश सुशांत ने किसी को अपने दिल की बात बताई होती, काश सुशांत ऐसा नहीं करता।

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