छपाक से कोई मेरी पहचान नहीं ले सकता..

दीपिका की छपाक को लेकर बहुत कंट्रोवर्सी हुई,दीपिका के जेएनयू जाने को लेकर हल्ला हुआ..कितना कुछ..कभी सेलेब्रिटी स्टंट तो कभी प्रमोशन का फंडा..पता नहीं युवा से लेकर राजनेता,बुद्धिजीवी से लेकर आम जनता तक...लेकिन किसी ने एक बार उस दर्द को महसूस करने की कोशिश नहीं की, जो ये फिल्म बनाते वक्त दीपिका को हुआ...बाकियों का पता नहीं,लेकिन इस छपाक ने मेरे अंदर जो मर गया था, उसे जिंदा कर दिया..एक लौ जो बुझ गई थी, उसे जला दिया...मैं एक पत्रकार हूं और थोड़ा सोशल इश्यूज पर काम कर लेती हूं..बहुत ज्यादा समाजसेवी या फेमिनिस्ट नहीं हूं..फिल्म देखकर उसकी समीक्षा करना ये भी मेरा काम नहीं है...आप लोगों ने पहले ही बहुत कुछ पढ़ लिख  लिया होगा...छपाक को लेकर कुछ खास नहीं कहना...बस इतना कि कुछ मर गया था वो जिंदा हुआ है मुझमें..छपाक से  कोई कुछ छीन नहीं सकता मुझसे...ठीक वैसे ही जैसे लक्ष्मी से नहीं छीन सका...

मुझे एक बात नहीं समझ नहीं आई कि क्यों हम एक फिल्म  को इतने कर्मशियल और बिजनेस के नजरिए से देखने लग जाते हैं कि कुछ और दिखाई नहीं देता..कयों हमारी इंसानियत मर जाती है..क्यों हम लक्ष्मी के जरिए दीपिका ने जिस दर्द को जीया है उसे हम महसूस कर पाते हैं...रेप रेप बहुत होता है...खबरें आती हैं, आंदोलन होते हैं, हालांकि बदलता कुछ भी नहीं है..और ना ही मैं उस पीड़ा  को कम करके देख रही हूं...लेकिन ऐसिड क्या इस दर्द को कम करके देखा जा सकता है...ऐसा नहीं है..कम से कम इस फिल्म के जरिए हम इतनी बड़ी सच्चाई से रू-ब-रू हो पाए...कुछ और ना कर सकें तो कम से कम लक्ष्मी के सफर को तो समझ सकें...ऐसी कितनी लक्षमी हैं जिनकी हालत बद से बदतर है...दीपिका कितनी हिम्मत दिखाई है..समाज का वो आईना जो कोई नहीं देखना चाहता..जहां लक्ष्मी पर एसिड फेंका गया..उस इलाके में काफी लोग मौजूद थे...वो भरा बाजार था.लेकिन सारे लोग मुंह फेर कर खड़े हो गए...न उस वक्त कुछ किया और ना ही आज इतने सालों बाद कुछ करेंगे..फिर ऐसे गंदे लोगोंको फिल्म देखकर  कुछ कहने का हक किसने दिया...

कुछ कहानियां फिल्मों की सफलता से बहुत परे होती हैं...लक्ष्मी के उस दर्दभरे सफर को याद करते ही रोना आता है...शायद मैं खुद को उस जगह रखकर सोचते ही कांप उठती हूूं...दीपिका ने हर एक घाव को झेला है...ये सिर्फ दीपिका ही कर सकती है .....आज मान गई मैं...रही बात इस फिल्म की छोटी बड़ी बारिकियां देखने और समझने की...तो सच बताऊं अगर तकनीकी चीजों में जाऊं तो कुछ खामी निकल आए,.लेकिन मैं तो बस इसी सोच में हूूं  कि इतने ऐसिड के मामले आ गए...लखनऊ, आगरा, हरियाणा,मैं खुद कितनी खबरें लिख चुकी हूं...लेकिन क्या हुआ...कितनी लक्ष्मी बनती जा रही हैं...10 साल की सजा और चंद रुपए का  मुआवजा क्या करूं...इससे आगे क्या....

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