ऑफिस जिंदगी नहीं है, बस जिंदगी का हिस्सा है

पिछले कुछ दिनों से एक ही बात सामने आ रही है,आफिस हो, घर या सड़क पर चलते लोग, बाजार में मॉल में हर कहीं हर कोई बस एक ही बात करता है...ऑफिस की परेशानी और छुट्टियां नहीं मिलती..खड़ूस बॉस, मैनेजर या टीम लीड...छुट्टी नहीं देता..या फिर बहुत काम कराते हैं..तंग हो जाते हैं..हर किसी की जुबां पर बस एक ही बात, शिकायत और गिला..और वे गलत नहीं हैं,,क्योंकि ऑफिस में ही लोगों का आधा दिन बितता है और अगर वहीं वे खुश नहीं हैं तो गिला शिकवा जायज  है...लेकिन क्या जिंदगी में बस यही रह गया है..क्या हमारे पास ऑफिस के अलावा कुछ और नहीं बचा है..क्या जीवन का नाम बस ऑफिस का काम है...क्या यही जिंदगी का मकसद है...हमारे पास और कुछ बात नहीं है, ना ही हमारे पास जीने की कोई वजह..मैं ऐसा नहीं कहती कि मैं इस बारे में बात नहीं करती लेकिन कम से कम ऑफिस को हम जिंदगी नहीं बना सकते...छुट्टी नहीं मिलती या फिर काम ज्यादा है ये कोई रीजन नहीं है.. हमें जिंदगी से कोई शिकायत नहीं होनी चाहिए क्योंकि हमें कम से कम खुदा ने काम दिया है..जॉब दी है..सुबह सुबह उठकर शिकायतों से पहले अगर हम अपने खुदा को शुक्रिया अदा करें कि उसने हमें एक अच्छा ऑफिस दिया है ...हां ऑफिस की दिक्कत सब जगह होती है लेकिन ऑफिस इज जस्ट ए पार्ट ऑफ लाइफ, नॉट ए हार्ट ऑफ लाइफ..

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